दिल्ली
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अहमदाबाद मे हुई तीन दिवसीय सर्वाच्च नीति निर्धारक संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में मध्यप्रदेश के संगठन महामंत्री सुहास भगत को जिम्मेंदारी से मुक्त कर वापस संघ में भेज दिया गया हैं. गौरतलब है कि अरविंद मेनन की जगह सुहास भगत को मध्यप्रदेश का संगठन महामंत्री बनाया गया था. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह ने संगठन में जान डालने के लिए, चुनाव के लिए पार्टी को तैयार करने के लिए और संगठन महामंत्री को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रभाव से मुक्त रखने के लिए मध्यप्रदेश में अरविंद मेनन की जगह सुहास भगत को संगठन महामंत्री बनाया गया था. लेकिन मध्यप्रदेश में शाह और संघ का प्रयोग बुरी तरह असफल रहा. सुहास भगत को जिस उम्मीद और भरोसे से भाजपा और संघ ने मध्यप्रदेश संगठन महामंत्री की जिम्मेंदारी दी थी, उसे निभाने और निर्वाह करने में सुहास भगत पूरी तरह फैल रहें.
अतुल राय पर निर्भरता ने भी सुहास भगत की छवि को धुमिल किया.
गौरतलब है कि सुहास भगत के साथ सह संगठन महामंत्री रहे अतुल राय को भी विवादों और उनके जीवनशैली को लेकर हो रही चर्चा के बाद संघ ने दो साल पहले वापस संघ में भेज दिया था. उस समय भी सुहास भगत पर आरोप लगे थे कि अपने डिप्टी संगठन महामंत्री अतुल राय पर भगत का कोई कंट्रोल नहीं है और महाकौशल के क्षेत्र में अतुल राय मनमानी करते है और सुहास भगत चुपचाप देखते रहते हैं.
मुख्यमंत्री शिवराज के सामने नतमस्तक होना भी सुहास भगत के खिलाफ गया
सुहास भगत के अधिंकाश समय भोपाल में ही रहने, कार्यकर्ताओं से मिलने से विरक्त रहने, शिवराज के निर्देश पर काम करने के आरोप और खबरे दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में पहुच गई थी. संगठन महामंत्रीयों की दिल्ली में हुई बैठक में तत्कालिन अध्यक्ष अमित शाह ने सुहास भगत को जमकर फटकारा था और कार्यर्शली में बदलाव लाने की हिदायत दी थी. लेकिन सुहास भगत नहीं बदलें. मोदी के तमाम काम और प्रचार के बाद भी मध्यप्रदेश भाजपा की विधानसभा चुनाव में हार हुई थी. हार के बाद अमित शाह के संघ और भाजपा के पदाधिकारीयों के साथ मंथन में यह बात खासतौर से उभर कर आई थी कि संगठन महामंत्री सुहास भगत के लचर कामकाज करने के तरीके और संगठन को मजबूत करने को लेकर पूरी तरह उदासीन होने के कारण संगठन प्रभावी नहीं रह गया था. शिवराज की सरकार में वापसी के बाद पूरा संगठन शिवराज के हाथ में सौप देने के कारण भी भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सुहास भगत से नाराज था.
कोरोना के चलते पहले नहीं हो सका था निर्णय
भाजपा के वरिष्ठ नेता की माने तो सुहास भगत को हटाने का निर्णय मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद ही कर लिया गया था. लेकिन कोरोना के कारण और अन्य कारणों से उस समय सुहास भगत पर निर्णय टल गया था. मध्यप्रदेश में कांग्रेस से आए विधायकों के दम पर फिर से भाजपा की सरकार बन तो गई लेकिन संगठन सुस्त ही रहा. सूत्र बताते है कि भाजपा ने संघ को साफ बता दिया था कि सुहास भगत के संगठन महामंत्री रहते आगमी विधानसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान होना तय हैं. संगठन को चुस्त दुरूस्त करने के लिए सुहास भगत को हटाना अपरिहार्य माना जा रहा था.