दिल्ली ब्यूरों/ झारखंड विकास मोर्चा को भाजपा में विलय कर 14 साल बाद भाजपा में लौटें बाबूलाल मराड़ी झारखड़ में भाजपा का फिर एक बार चेहरा बनेंगे। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने आरएसएसबीजेपी न्यूज से बातचीत में कहा कि पार्टी हाईकमान ने बाबूलाल मराड़ी के नेतृत्व में अगला लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़नें का निर्णय लिया है। बाबूलाल झारखंड में पार्टी का चेहरा होंगे। हालाकि पार्टी ने अधिकारीक रूप से इसकी घोषणा नहीं की है लेकिन पार्टी ने बाबूलाल को इस बात के संकेत दे दिए है।
झारखड़ में भाजपा के चुनावी प्रभारी रहे वरिष्ठ नेता ओम माथूर का कहना है कि झारखंड में भाजपा को बाबूलाल मरांडी की और मरांडी को भाजपा की जरूरत थी। मराड़ी का पार्टी में वापस आना दोनों के लिए जरूरी था। भाजपा को भी प्रदेश में साफ सूथरी छवि के आदिवासी नेता की जरूरत थी वही दूसरी और मराड़ी भी भाजपा से बाहर रहकर 14 साल में अपना मजबूत संगठन खड़ा नहीं कर सकें और 2009 से 2019 के लोकसभा तक चार चुनाव हार चुके बाबूलाल मरांडी के लिए भाजपा में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उनके पार्टी के विधायक भी सत्ता के साथ जानें के लालच में समय समय पर उनका साथ छोड़तें रहें।
राज्यसभा में भाजपा को फायदा होगा
अगलें माह झारखड़ से राज्यसभा की दो लोकसभा सीटें खाली हो रही है। मराड़ी के साथ आनें से झारखड़ से भाजपा को एक सीट पर जीत मिलना तय है। राज्यसभा में जीत के लिए एक उम्मीदवार को कम से कम 28 विधायकों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी। बाबूलाल मरांडी के भाजपा में शामिल होने के बाद भाजपा के सदस्य संख्या 26 हो गई है। भाजपा को भरोसा है कि आजसू के दो विधायक और निर्दलीय विधायकों का भी उसकों समर्थन प्राप्त है।ऐसे में भाजपा को राज्यसभा की एक सीट मिलना तय है।
भाजपा का चेहरा बनेंगे मराड़ी
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि बाबूलाल मराड़ी को भाजपा ने एक सोची समझी रणनीति के तहत भाजपा में शामिल किया है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने खुद मराड़ी के वापसी की पूरी रणनीति बनाई और खुद पार्टी में शामिल करानें के लिए रांची भी गए। अमित शाह बाबूलाल मरांडी को पसंद करते हैं और बाबूलाल मराड़ी से लगातार संपर्क में भी शाह रहें। झारखड़ के संघ पदाधिकारी भी बाबूलाल मराड़ी को वापस भाजपा में आनें के लिए मना रहें थे। संघ के प्रचारक के रूप में रहें मराड़ी को संघ में भी पंसद किया जाता है।
रघुवर के हार के बाद मराड़ी की वापसी पर तेजी से बढी भाजपा
सूत्र बतातें है कि झारखड़ में भाजपा की हार और खुद मुख्यमंत्री रघुवरदास की हार के बाद भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सकतें में था। पार्टी इस बात को समझ चुकी थी कि झारखड़ में पार्टी को फिर से खड़ा करनें के लिए सिर्फ रघुवर दास पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। भाजपा प्रदेश में अपनी जमीनी हकीकत से भी वाफिक हो गई थी कि अपने दम पर झारखड में सत्ता नहीं पा सकती है। उसे किसी ना किसी स्थानीय नेता का सहयोग लेना पड़ेगा और अपने दम पर सत्ता पाना है तों पुराने भाजपाई मराड़ी को वापस लाना होगा जिससें आदिवासी भी भाजपा से जुड़े और मराड़ी का 5 प्रतिशत वोट भी उसमें खातें में आए। झारखंड के बिहार से अलग होने के बाद मराड़ी प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने थे। तब भाजपा के वे झारखंड के कद्दावर नेता माने जाते थे. पर 28 महीनों तक मुख्यमंत्री रहने के बाद गुटबाजी की वजह से उन्हें कुरसी छोड़नी पड़ी थी और उनकी जगह अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया गया था।
झारखड़ में भाजपा की जड़े जमानें वाले नेताओं में शुमार रहे है मराड़ी।
1981 में मराडी ने भाजपा का दामन थामा था। 1919 में भाजपा ने शिबू सोरेन के गढ ढुमका से मराड़ी को सोरेने के खिलाफ मैदान में उतारा था। हालाकि इस पहले लोकसभा चुनाव में मराड़ी एक लाख से ज्यादा वोटों से हार गए थे। 1996 के आम चुनाव में भी मराड़ी को सोरेन से हार का सामना करना पड़ा लेकिन हार का अंतर महज 6 से भी कम था। दो लोकसभा चुनाव में हार चुके मराडी ने 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की और इन दोनो चुनावों में शिबू सोरेन की पत्नी को पटकनी दी। अटल सरकार में मराड़ी को पर्यावरण और वन राज्यमंत्री बनाया गया था। साल 2000 में झारखड़ राज्य के बननें पर मराड़ी को राज्य का पहला मुख्यमंत्री बननें का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
भाजपा से बाहर होकर कुछ खास नहीं कर सकें मराड़ी।
झारखड़ के मुख्यमंत्री पद गंवानें और हशिए में जानें के बाद 2006 में मराड़ी ने गुटबाजी का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ दी थी। भाजपा का दामन छोड़नें और अपनी पार्टी बनानें के बाद मराड़ी ने झारखंड़ का निर्विवाद नेता और फिर सत्ता पानें की भरसक कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सके। उनके विधायक और पार्टी के पदाधिकारी उनका साथ छोड़तें रहे। 2009 के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव तक बाबूलाल मरांडी कोई चुनाव नहीं जीत पाए थे।
2014 के लोकसभा चुनाव में वे दुमका चले गये जहां शिबू सोरेन ने उन्हें हरा दिया था। 2014 के विधानसभा चुनाव में मराड़ी ने धनवार और गिरिडीह से विधानसभा चुनाव लड़ा और दोनों जगह हार का सामना करना पड़ा। 2014 के बाद उनकी पार्टी के छह विधायक टूटकर भाजपा में शामिल हो गए थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में मराड़ी को कोडरमा से भाजपा की अन्नपूर्णा देवी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। 2019 के विधानसभा चुनाव में बमुश्किल उन्होेनें जीत दर्ज की।
