छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए आसान नहीं होगा कांग्रेस को सत्ता से बाहर ​करना

इसी साल के अंत में मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ में विधानसभा चुनाव होना है। पिछले विधानसभा चुनाव में इन तीनों राज्यों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। मध्सप्रदेश और राजस्थान में थोड़े से अंतर से भाजपा हारी थी लेकिन मध्यप्रदेश से टूट कर बने छत्तीसगढ़ में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। मध्यप्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस के सिंधिया के साथ मिलने के बाद सरकार कमलनाथ सरकार को गिरा कर अपनी सरकार बना ली थी। छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए यह मध्यप्रदेश जैसी संभावना भी नहीं थी क्योकि हार बेहद बूरी थी।
छत्तीसगढ़ को पाने के लिए भाजपा ने वहा संगठन में फेरबदल किए थे। भाजपा के मुख्यमंत्री रहे और ठाकुर बिरादरी से आने वाले रमन सिंह को उपाध्यक्ष बनाकर दिल्ली बुला लिया। भाजपा पर यह आरोप लगते रहे कि आदिवासी और ओबीसी बाहुल्य प्रदेश में भाजपा किसी आदिवासी नेता को आगे नहीं करना चाहती लेकिन भाजपा ने इस आरोप का जवाब देने के लिए आदिवासी समाज से आने वाले अरूण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया और ओबीसी वर्ग से आने वाले चंदेल को ​नेता प्रतिपक्ष बना दिया। भाजपा आदिवासी और ओबीसी को फिर से अपने साथ लाना चाहती है जो फिलहाल कांग्रेस के साथ है। काग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इन समुदाय को साथ रखा है। भाजपा ने संगठन को मजबूत करने के लिए ओम माथुर को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया है।
हालाकि भाजपा की इन कोशिशों के बाद भी भाजपा के लिए छत्तीसगढ़ को कांग्रेस मुक्त करना आसान नहीं होगा। भाजपा के पास कोई चेहरा नहीं है जो भूपेश बघेश को टक्कर दे सके। भूपेश बघेल ने जनप्रिय योजना को चलाकर अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। कांग्रेस हाईकमान ने भी भूपेश बघेल के नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव लड़ना तय कर लिया है। भाजपा रमन सिंह को फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहती है। ऐसे रमन के बाद छत्तीसगढ़ में कौन अभी तय नहीं है। संगठन में भी एकता नहीं है। राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ ने जरूर छत्तीसगढ़ में अपनी पहुच गहरी और हर गांव में कर ली है, लेकिन इसका फायदा भाजपा को विधानसभा चुनाव में मिलता है कि नहीं अभी देखना बाकी है।

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