दिल्ली ब्यूरो
नागालैंड में वर्तमान में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) सत्ता में है। वर्तमान में राज्य विधानसभा में कुल 59 सदस्य हैं। इनमें एनडीपीपी के 41, भाजपा के 12, नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के चार, तथा दो निर्दलीय सदस्य हैं, जबकि एक सीट फिलहाल रिक्त है। पिछले विधानसभा चुनाव में नागालैंड में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था। पूर्व मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग के नेतृत्व वाला एनपीएफ 26 सीटों पर जीत हासिल कर सबसे बड़े दल के रूप में उभरा। इस चुनाव में वरिष्ठ नेता नेफियू रियो के नेतृत्व वाले एनडीपीपी को 17 और भाजपा को 12 सीटों पर जीत हासिल हुई। बाद में भाजपा और एनडीपीपी ने जनता दल यूनाइटेड और कुछ अन्य दलों के सहयोग से राज्य में सरकार बनाई और नेफियू रियो चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने।
नागालैड़ की राजनीति के सबसे बड़े चेहरे नागालैड़ सरकार के मौजूदा मुख्यमंत्री रियों के सामने सबसे कम चुनौती नजर आ रही है। पूर्वोत्तर में भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी एनपीएफ से मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के अलग होने के बाद ही 2018 में एनडीपीपी अस्तित्व में आया था। सितंबर 2021 में नगालैंड विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल नगा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) भी राष्ट्रवादी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा बन गया, जिससे राज्य विपक्ष-विहीन हो गया। लंबे समय से अटके नगा राजनीतिक मुद्दे को शांतिपूर्ण ढंग से और परस्पर सौहार्द के साथ हल करने की दिशा में सामूहिक प्रयास’ के इरादे के साथ एनपीएफ रियो सरकार का हिस्सा बना। हालांकि, इसका कोई समाधान नजर न आने के बीच 2022 में एनपीएफ के 21 विधायक एनडीपीपी में शामिल हो गए। और 2023 की चुनावी दौड़ में सरकार का हिस्सा होने के बावजूद पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। एनडीपीपी-भाजपा गठबंधन ने अपना सीट बंटवारे का फॉर्मूला- एनडीपीपी को 40 और भाजपा को 20- घोषित किया है। इसमें एनपीएफ के लिए कोई जगह नहीं है। वहीं कांग्रेस भी कुछ ऐसे ही हाल से गुजर रही है, जिसके पास एक भी विधायक नहीं है, उसे अपनी जगह बनाने के लिए जदयू, राजद, आप और एनपीपी जैसी पार्टियों के साथ मुकाबला करना पड़ रहा है।
सुचारु ढंग से जारी रहने के आश्वासन के बावजूद एनडीपीपी-भाजपा गठबंधन आंतरिक चुनौतियों से जूझ रहा है। मौजूदा विधानसभा में एनडीपीपी के पास 48 विधायक हैं, लेकिन सीट बंटवारे के समझौते के मुताबिक, पार्टी केवल 40 पर ही प्रत्याशी उतार सकती है। ऐसे में बाकी को दूसरे दल अपने पाले में लाने के लिए लुभा सकते हैं। 24 जनवरी को चार बार के विधायक और पूर्व मंत्री इमकोंग एल. एमचेन भाजपा में शामिल हुए थे। सीट बंटवारे पर 40:20 की व्यवस्था भी असंतोष का कारण बनी हुई है, राज्य भाजपा के कई नेताओं को लगता है कि कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में संगठन खड़ा करने के लिए की गई मेहनत बेकार चली जाएगी यदि वे सीटें एनडीपीपी के लिए ‘छोड़ी गई. इसके अलावा, ‘टिकट मिलने के आश्वासन’ पर भाजपा में शामिल हुए नेता भी अब बगावत पर उतारू हैं।
बहरहाल, भाजपा के शीर्ष नेता इस सबको लेकर बहुत चिंतित नहीं हैं, बहुत सारी बातों का घालमेल करीब 90 फीसदी ईसाई आबादी वाले राज्य में पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ने का ही संकेत देता है।
भाजपा को इस बात का अहसास है कि वह इन अपने दम पर मेघालय और नागालैड़ में सरकार नहीं बना सकती। भाजपा की पूरी कोशिश किसी भी तरह सरकार का हिस्सा बनने की है। इस कारण भाजपा चुनाव के बाद किसी भी दल से गठबंधन करने से नहीं हिचकेगी। भाजपा ने सत्ता के लिए त्रिपुरा,मेघालय और नागालैड़ मे अपनी सभी पत्तें खुले रखे है।
