दिल्ली ब्यूरों/ रामविलास पासवान के निधन होने और चिराग के एनडीए से अलग राह पकड़ने के बाद भाजपा और जदयू गठबंधन बिहार चुनाव में उसके असर को कम करने और डेमेज कंट्रोल में जुट गया है। गौरतलब है कि 2015 के बिहार विधान सभा चुनावों में राम विलास पासवान की एलजेपी 42 सीटों पर लड़कर केवल दो सीटें जीत पाई थी। अब राम विलास पासवान नहीं है और उनके बेटें ने इस बार पार्टी ने अकेले दम 143 सीटों पर लड़ने का पैसला किया है।
भाजपा के नेता इस बात का मानते है कि सहानुभूति लहर’ तो होगी, लेकिन उसका चुनावों पर सीमित असर होगा और चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सके इसकी संभावना से भाजपा नेता इंकार कर रहे है। इसके बाद भी भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व ने बिहार के नेताओं को चिराग पर हमलारूख न अपनाने के निर्देश दिए है। भाजपा इस बात को स्वीकार कर रही है कि रामविलास पासवान का सामाजिक आधार था और चिराग का बैर नीतिश के साथ है, भाजपा के साथ नहीं, ऐसे में भाजपा चाहती है कि चुनाव के बाद जरूरत पड़ने पर चिराग के साथ बातचीत के दरवाजे खुले रह सके। वही नीतिश के दल का मानना है कि रामविलास पासवान एक बड़े नेता थे, लेकिन उनका सामाजिक आधार दलितों के एक वर्ग तक सीमित था। पासवान समुदाय और कुछ दूसरी जातियों के वोट एकजुट हो सकते हैं, जो उनके बारे में अच्छी राय रखती थीं। लेकिन पूरे बिहार में सहानुभूति की लहर बनें इसकी संभावना न के बराबर है।
चिराग पासवान की स्वीकार्यता अपने पिता के समान न होने से राहत में भाजपा
भाजपा और जदयू इस बात से भी राहत महसूस कर रहे है कि रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान की स्वीकार्यता उतनी नहीं है जितनी रामविलास की थी। पासवान जमीन से जुडे और संघर्षो के बाद नेता बने थे और पूरे बिहार का समर्थन लेने में सफल रहे थे। जबकि चिराग पासवान कभी भी जमीन स्तर के नेता नहीे रहे। चिराग बिहार के लिए कम और दिल्ली के लिए ज्यादा नेता माने जाते रहे है, ऐसे में बिहार की जनता उनको कंधों पर उठा ले इसकी संभावना कम ही है। फिलहाल भाजपा चुनाव परिणाम तक कोई जोखिम मोल नहीे लेना चाहती और इसलिए अपने नेताओ को चिराग के खिलाफ सोच समझकर बोलने की सलाह दे रही है।