मेघालय और नागालैड़ में चुनाव प्रचार अभियान के बीच राष्ट्रपति ने इन दोनों चुनावी राज्यों में नए राज्यपालों की नियुक्ति कर दी है। रविवार को जारी आदेश में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मणिपुर के राज्यपाल ला गणेशन को नागालैंड का राज्यपाल नियुक्त और बिहार के राज्यपाल फागू चौहान को मेघालय का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इन दोनो राज्यों में 27 फरवरी को मतदान होगा। नागालैड़ विधानसभा का कार्यकाल 12 मार्च को समाप्त हो रहा है। वही मेघालय विधानसभा का कार्यकाल 15 मार्च को समाप्त हो रहा है। तीनों राज्यों की विधानसभा में बराबर 60 सीटें है। पूवोत्तर के इन तीन राज्यों में इस साल सबसे पहले चुनाव होने जा रहे है। त्रिपुरा में जहा भाजपा की सरकार है वही,वही नागालैड़ में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी सत्ता में है। मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी एनपीपी की सरकार है।
शुरूआत कांग्रेस से करे तो मेघालय में कांग्रेस के लिए खोने के लिए कुछ नहीं है, क्योकि कांग्रेस के सभी विधायक कांग्रेस का साथ छोड़कर विभिन्न दलों में शामिल हो चुके थे। एक समय कांग्रेस मेघालय में मजबूत राजनीतिक ताकत थी। मुकुल संगमा के नेतृत्व में दो बार सत्ता में रही कांग्रेस 2018 में 21 सीटें जीत सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि कॉनराड संगमा की पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने 19 सीटें जीतीं। एनपीपी ने अंततः भाजपा, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी), पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीएफ) और हिल स्टेट पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (एचएसपीडीपी) और कुछ निर्दलीय विधायकों के साथ एक इंद्रधनुषी सरकार बनाई। 75 फीसदी ईसाई आबादी वाले मेघालय में दो विधायकों के साथ यह भाजपा की पहली सरकार थी।
एनपीपी भाजपा से नाता तोड़ चुकी है और मुकुल संगमा टीएमसी का चेहरा बन चुके हैं। राज्य चतुष्कोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। ऐसा इस राज्य में पहली बार हो रहा है। जिसमें एनपीपी, भाजपा, कांग्रेस और टीएमसी किस्मत आजमा रही हैं। भाजपा के पास कोई स्थानीय नेताओं से ज्यादा मोदी के नाम और नार्थ ईस्ट के लिए मोदी के किए गए काम पर निर्भर है। इस कारण भाजपा की मेघालय में टैग लाइन है‘एम पावर मेघालय’ यानी मोदी ने मेघालय को दी मजबूती। भाजपा को उम्मीद है कि मेघालय में डबल इंजन की सरकार बनेगी।’ उम्मीदवार की निजी लोकप्रियता के आधार पर चुनावी जीत या हार निर्धारित करने वाले इस राज्य के बारे में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नितांत स्थानीय मुद्दे, जिसमें ज्यादातर आदिवासी समुदायों से जुड़े हैं, ही महत्वपूर्ण साबित होंगे।
भाजपा का दावा है कि वह 2018 की दो सीटों की तुलना में इस बार आंकड़ा 10-15 तक पहुंचा देगी। पार्टी की राज्य इकाई को कुछ मुद्दों पर अपने राष्ट्रीय रुख से पीछे हटने में भी कोई परहेज नहीं है। उदाहरण के तौर पर भाजपा के दो विधायकों में से एक संबोर शुल्लई सार्वजनिक तौर पर लोगों को अधिक गोमांस खाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
राज्य में कांग्रेस ही सबसे बुरी स्थिति में नजर आ रही है। 2018 के बाद सबसे पहले तो इसने चार विधायक गंवाए, जिसमें एक ने इस्तीफा दे दिया जबकि तीन की मृत्यु हो गई। नवंबर 2021 में मुकुल संगमा और 11 अन्य विधायक टीएमसी में शामिल हो गए और फिर पांच विधायकों ने एनपीपी के नेतृत्व वाली सरकार को अपने समर्थन की घोषणा कर दी जिसके बाद पार्टी आलाकमान ने उन्हें निलंबित कर दिया। उनमें से दो बीते दिसंबर में भाजपा में शामिल हो गए। रातोरात राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी बनी तृणमूल कांग्रेस अब पूर्वोत्तर में अपनी पहली जीत हासिल करने के लिए मुकुल संगमा के सियासी असर और प्रशांत किशोर की आई-पैक के चुनावी प्रबंधन से आसरा लगाए बैठी है। हालांकि मुकुल का प्रभाव क्षेत्र गारो हिल्स है, जहां पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए. संगमा की राजनीतिक विरासत संभालने वाले कॉनराड और उनके रिश्तेदार अहम खिलाड़ी बने हुए हैं।
गारो हिल्स में 24 विधानसभा सीटें (करीब 20 फीसद आबादी) आती हैं, जबकि बाकी सीटें खासी जनजाति के वर्चस्व वाली खासी हिल्स और आमतौर पर जयंतिया जनजाति बहुल आबादी वाली जयंतिया हिल्स में आती हैं। कॉनराड और मुकुल, दोनों के लिए यह लड़ाई गारो हिल्स पर पकड़ बनाए रखने से ज्यादा खासी बहुल क्षेत्रों में भी अधिकतम सीटें जीतने की भी है।
मेघालय में एनपीपी और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ने की घोषणा
वर्तमान में मेघालय विधानसभा में कुल 42 सदस्य हैं, जबकि 18 सीट अभी रिक्त हैं। इनमें एनपीपी के 20, यूडीपी के आठ, तृणमूल कांग्रेस के आठ, पीडीएफ और भाजपा के दो-दो, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का एक ओर एक निर्दलीय विधायक शामिल हैं। मेघालय के पिछले चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था। कांग्रेस 21 सीट पर जीत दर्ज कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, लेकिन वह बहुमत से दूर रह गई। कॉनराड संगमा के नेतृत्व वाली एनपीपी 19 सीट पर जीत के साथ दूसरे नंबर पर थी। प्रदेश की यूडीपी के छह सदस्य चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इसी प्रकार राज्य की पीडीएफ को चार सीट पर जीत मिली थी और भाजपा तथा एचएसपीडीपी को दो-दो सीट पर सफलता मिली थी। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में एनपीपी और भाजपा के बीच गठबंधन था। इस बार के चुनाव में एनपीपी और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ने की घोषणा की है।
